Friday, December 28, 2012

श्री साईं कथा आराधना





श्री साईं कथा आराधना 

शिरडी के साईं ईश्वर का अवतार थे भक्तों,
दुखियों के दुःख हरने को आये थे वो, भक्तों !
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिये ।।
गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन से था कहा
जब-जब बढ़ेगा पाप, धरा पे मैं आऊंगा,
करुणा के रूप में वो बन साईं आ गए
और साईं बाबा बनकर दुनिया में छा गए.....
प्रकटा है संत शिर्डी में सब लोगों ने कहा,
एक झलक उसकी पाने को हर दिल मचल गया ,
वो नौजवान फकीर समाधी मे लीन था,
चारों ओर उसके फैला प्रकाश था
अल्लाह है सबका मालिक वो कहता था सदा
बस नीम के ही नीचे बैठा रहता था सदा
उसकी छवि को देख के व्याकुल थे सबके मन
चरणों में कुछ ने कर दिया सर्वस्व था अर्पण
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
लोगों ने उससे एक दिन पूछ ही लिया
तुम कौन हो, यहां क्यूं डेरा ही डाल दिया
इस पेड़ के नीचे मेरे गुरु की है समाधी
बाबा ने उन्हें यह बतला कर शांत कर दिया
गाँव वालों ने फिर उसकी इस बात को परखा
उस जगह के दृश्य का अपना ही था जलवा
समाधी पे कुछ ताज़े फूल थे बिखरे
और चारों कोनों पे जल रहे थे दीये
ऐसा देख लोगों की श्रद्धा बढ़ गई
आपस में उसके बारे में चर्चाएं मिट गई
किसी ने बाबा को दिव्य पुरुष मान लिया
तो किसी ने बाबा को इश्वर ही मान लिया
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
कुछ लोग अब भी जलते रहते थे रात-दिन
अपशब्द भी कहते थे, सताते थे रात दिन
उसने ना कभी उन पर क्रोध था किया
समझा-बुझा के लोगों को बस माफ़ था किया
फिर एक दिन शिर्डी को वो छोड़ ही गया
पलभर में पूरी नगरी को अनाथ कर गया
भगवान मान लोगों ने कभी था उसे पूजा
जिनके लिए भगवान था न कोई भी दूजा
वो रात-दिन भक्ति में रहते थे बाबा की
दिन-रात राह तकते थे वो अपने बाबा की
माँ बायजा रोटी ले जंगल में खोजतीं
रूठ माँ से कहां चला गया ये ही सोचतीं
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
लौटा वो फिर किसी बारात की शान में
म्हालसापति ने साईं कहा उसके मान में
लोगों ने दी हंसकर आपस में बधाई
और साईं को दी फिर ना जाने की दुहाई
खंडोबा जी के मंदिर में मेला-सा जुड़ गया
फकीर लौट आया है किस्सा ये छिड गया
म्हाल्सापति ने आओ साईंश्री कह के पुकारा
उस साईं को फिर सबने अपने दिल में उतारा
तब साईं ने मस्ज़िद को अपना घर बना लिया
हिन्दू-मुस्लिम सबको गले लगा लिया
मस्ज़िद में बैठ के सबकी पीड़ाएं वो हरता
और द्वारकामाई सदा उसको वो कहता
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
हर भाव में हर रूप में पाया उन्हें भगवंत
श्री साईंनाथ अनंत उनकी कथा है अनंत
दत्तात्रेय-जगदीश्वर का रूप थे साईं
श्रद्धा-सबुरी और भक्ति साईं से पाई 
सीधा-सादा रूप था श्री साईंनाथ का
जिसने भी देखा वो हो गया साईंनाथ का
दर्शन इनके जो भी एक बार पा गया
भाव-बंधन से पल में वो मुक्ति पा गया
साईं की दृष्टि में न कोई ऊंचा न नीचा
हर एक को साईं ने अपने प्रेम से सींचा
शिर्डी नगर को आटे से ऐसा बंधाया
की हैजे से शिर्डी को एक पल में बचाया
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
बाबा की लीलाओं को जो भी ध्यान से सुनता
मिलती है उसे मुक्ति, परमधाम है मिलता
रोहिला के कुविचार को जब ख़त्म साईं ने किया
तो जड़ चेतन में खुद होने का भान दे दिया
गौली बुवा की श्रद्धा से साईं विट्ठल भी बने
काका को भी उसी भाव में दर्शन दे दिए
बाबा ने गुरु महिमा को ऐसा मान दे दिया
की गुरु के स्थान को पूजास्थल बना दिया
बाबा ने श्रद्धा का एक चमत्कार दिखाया
दास गणु को निज चरणों में ही प्रयाग दिखाया
यौगिक क्रियाओं का साईं को था अद्भुत ज्ञान
पर इस बात का कभी था ना कोई मान
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
श्री साईं को फूलों से बेहद लगाव था
बच्चों की भांति उनका उन्हें बड़ा ध्यान था
बाबा नित पौधों को खुद जल से सींचते
जल के लिए घड़े वामन तांत्या ही देते।
शिर्डी है भाग्यशाली, उसने पाया है हीरा
गंगागीर संत ने ऐसा कहा होके अधीरा।
बाबा की मेहनत से वहां फुलवारी बन गई
भक्तों की साईं में और श्रद्धा बढ़ गई
श्री साईं जिस नीम के नीचे रहते थे
उसके पत्ते कड़वे नहीं, बड़े ही मीठे थे
उसके नीचे ही पादुकाएं स्थापित हो गई
जो साईं-अवतरण की प्रतीक बन गई।
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए॥
बाबा रोज़ मस्ज़िद में दीपक जलाते थे
बनियों से भिक्षा में वो तेल मांग लाते थे
एक रोज़ दीवाली पे किसी ने तेल न दिया
बाबा ने फिर भी उन्हें आशीष ही दिया
बाबा ने उस रात भी दीवाली थी मनाई
सारी रात पानी से ज्योति जगाई
ये देख लोग अत्यंत शर्मिन्दा हो गए
और साईं के चरणों में नतमस्तक हो गए
बाबा ने अहं त्यागने की बात उनसे की
कोई शिकता, कोई शिकायत ना उनसे की
बाबा की इस लीला से सब हैरान हो गए
और साईं ही भगवान हैं ऐसा वे मान गए
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
श्री साईं ने सब धर्मों का था भेद मिटाया
रामनवमी के संग-संग उर्स मनाया
सब ही धर्मों का मालिक एक है भाई
हर भक्त को येही शिक्षा देते थे साईं
जब जिसने जिस भाव में साईं को ध्याया
वैसे ही रूप में साईं ने खुद को दिखाया
कोई उन्हें अपने गुरू रूप में पाता
कोई उन्हें ईश मान सिर को झुकाता
साईं के प्रति सबके दिल में सम्मान था रहता
कोई उन्हें चन्दन, कोई इत्र लगाता
लाखों बार धन्य है वो धरती माता
प्रकटे जहां पे श्री शिर्डी के नाथा
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए॥
हर प्राणी में ईश्वर का वास बताया,
सब जीवों से प्यार करो ये भी सिखाया
भूखे को दिए भोजन में स्वयं को तृप्त दिखाकर
इस सृष्टि में खुद होने का आभास कराया
दिखने में साईं एक सामान्य पुरुष थे
मात्र भक्तों के कल्याण की चिंता में रहते थे
वैराग्य, तप, ज्ञान, योग उनमें भरा था
वो सत्पुरुष एकदम आसक्ति रहित था
शरणागत भक्तों के साईं बने आश्रयदाता
हर जन के वो प्रभु सबके भाग्य विधाता
उनके भक्तों का उन पर अटूट प्रेम था
श्री साईं का दिव्य स्वरुप ऐसा ही था
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
साईं की लीला सुन के लोग दौड़े थे आते
और उनके आगे बैठ के फरियाद सुनाते
भिक्षा में मिले भोजन को साईं बाँट के खाते
कुत्ते बिल्ली को दे के वो तृप्त हो जाते
बाबा ने कभी किसी से न घृणा ही करी
रोगी और अपाहिज की खुद सेवा ही करी
भागो जी की काया में जहां-तहां घाव थे भरे
वो कोढ़ से पीड़ित हो सह रहे थे कष्ट बड़े
साईं-कृपा से भागो जी कष्ट से मुक्ति पा गए
और साईं सेवा करके तो धन्य ही हो गए
सचमुच करुणा के अवतार थे साईं
हर कष्ट, दुःख से जिन्होंने मुक्ति दिलाई
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
साईं की शरण में जो एक बार आ गया
साईं-कृपा को वो तो पल में ही पा गया
ममता की मूरत बन कर साईं आए थे शिर्डी
आंचल की छांव आज भी देती वही शिर्डी
साईं जी ने दी थी कोढ़ी को भी काया
फिर भागो जी की सेवा ले के मान बढ़ाया
श्री साईं ने दौलत से ना कभी प्यार था किया
भिक्षा पे ही अपना जीवन बिता दिया
गर दक्षिणा जो लेते साईं कभी किसी से
लौटाते उसको अपने हज़ार हाथों से
शिर्डी में एक दिन घोर झंझावात आया
बाबा उस पे गरजे और शांत कराया
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
बाबा के चरणकमलों में सारे धाम हैं बसे
उनमें ही राम-श्याम हैं, रहमान हैं बसे
उनमें ही गीता, बाइबिल, उनमें कुरान है
उनमें ही सारे वेद सारे पुराण हैं
इंसानियत के धर्म का प्रतीक थे साईं
धूनी जला के लोगों की पीड़ा थी मिटाई
काका ने जब गीता का था श्लोक सुनाया
तब साईं ने ही उसका अर्थ बताया
बाबा के गीता-ज्ञान से हैरान थे सभी
बाबा की लीलाओं से अनजान थे सभी
साईं हर भक्त की पीड़ा खुद पे लेते
और बदले में उसको सुख-शांति देते
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
एक बार भीमा जी को क्षयरोग हो गया
तब साईं भक्त नाना ने उसको बताया
अब एक मार्ग शेष है बस साईं चरण का
उनकी कृपा से ही जाएगा रोग तन का
भीमा जी पहुँचे शिर्डी और बाबा से कहा
मुझपे दया करो मैं आया हूं यहां
इस विनती से बाबा का दिल पिघल गया
की ऐसी दया उस पर रोग नष्ट हो गया
साईं ने सपने में हृदय पर पाषाण घुमाया
और पल भर में क्षयरोग को मार भगाया
आनंदित हो भीमा जी निज गाँव आ गया
फिर उसने नया सत्य साईं व्रत चलाया
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
जो काम, क्रोध, अहंकार में है दब गया,
वो इंसान जीते जी मानों मर गया
उस व्यक्ति को ब्रह्मज्ञान प्राप्त कैसे हो सकता
जो इंसान मोह-माया में उलझ गया
बाबा के पास ऐसा ही एक व्यक्ति आया,
वो ब्रह्मज्ञान चाहता पर उससे छूटी न माया
बाबा ने उसे जेब की ब्रह्मरूपि माया को दिखाया
साईं की सर्वज्ञता से वह द्रवित हो गया 
साईं के चरणों में गिरकर वो माफी मांगने लगा
रोने लगा और गिड़गिड़ाने भी लगा
बाबा की शिक्षा का उसपे फिर असर पड़ गया
संतोषपूर्वक वो अपने घर को लौट गया
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
साईं ने हेमांड से जो था लिखाया
जिसने भी आत्मसात् किया, मुक्ति पा गया
फिर दासगणु को भी आशीष दे दिया
वो भी साईं चरणों में जगह पा गया
बाबा का यश फिर चारों ओर फैल गया
और देखते ही देखते शिर्डी तीर्थ बन गया
साईं दोनों हाथों से ऊदी को देते
भक्तों के कल्याण हेतु शिक्षा भी देते
बाबा की छवि थी सारे जग से ही न्यारी
लीलाएं उनकी अनंत थी, बड़ी चमत्कारी
साईं के हृदय में भक्तों के प्रति असीम प्रेम थे
जो उसका हो गया, वो बड़ा खुशनसीब था
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
कभी कृष्ण बन कर रिझाते थे साईं
कभी घुंघरू बांध नाचते थे साईं
कभी उन्होंने चंडी का रूप धर लिया
कभी शिव भोला बन जाते थे साईं
श्री साईं बाबा सदा आत्मलीन रहते थे
सुखों की कभी न कोई चाह करते थे
उनके लिए अमीर-गरीब एक समान थे
बाबा हर भक्त का रखते ध्यान थे
वे सदा एक आसन पर बैठे रहते थे
भक्तों के कल्याण में ही लगे रहते थे
अल्लाह मालिक सदा ही उनके होठों पे रहता
वो संत पूर्ण ब्रह्मज्ञानी प्रतीत-सा होता
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
श्री साईं खुद को मालिक का दास कहते थे
भक्तों की सारी विपदाएं अपने ऊपर लेते थे
बाबा दया के सागर थे और धाम करुणा के
वो ही हरते थे दुःख सारे जग के
जिनके हृदय में बस गए श्री साईंनाथा
उनका कोई अमंगल करने ना पाता
कांशीराम नाम का एक साईं भक्त था
वो बाबा को हमेशा ही दक्षिणा देता था
बाबा उन पैसों को औरों को बांटते
दक्षिणा ले के दान का सही मर्म बताते
कांशीराम के दिल में एक दिन बात ये आई
मेरा ही धन औरों में बांटने से इनकी कौन बड़ाई
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
अंतर्यामी साईं ने उसका अहं है जान लिया
एक झटके में उसका सारा धन समेट लिया
निर्धन फिर बन गया कांशी भाई
अपनी ही चतुराई उसके काम ना आई
कांशीराम अहं पे अपने लज्जित हो गया
बाबा के चरणों में वो आकर गिर गया
श्री साईं को उस पे फिर दया आ गई
लीला रच के लौटा दी उसकी सारी कमाई
इस जग में कौन दाता है, कौन भिखारी
कांशीराम को ये बातें फिर समझ हैं आईं
साईं बाबा में है सारी दुनिया समाई
बाबा की लीलाएं किसी की समझ न आई
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
श्री साईं भक्तों की इच्छा का मान थे रखते
किसी एक में दूजे की मर्ज़ी सहन ना करते
कभी भक्तों से विनोदपूर्ण हास्य भी करते
कभी उनके क्रोध से भक्त थे डरते
सभी भक्त मिल साईं से प्रार्थना करते
चरणों में उनके सब अपना अर्पण करते
हे प्रभु साईं, प्रवृत्ति को हमारी अंतर्मुखी बना दो
सत्य और असत्य का हम में विवेक जगा दो
बाबा की दृष्टि से सब रोग नष्ट हो जाते
मरणासन्न रोगी भी जीवनदान पा जाते
व्रत और उपवास कुछ भी जब काम ना आता
तो साईं-साईं ही प्रभु से भेंट कराता
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
शिर्डी में एक बार भजन मंडली आई
भजनों से धन कमाने का संग लक्ष्य भी लाई
मंडली बहुत ही सुंदर भजन गाती थी
उनमें से एक स्त्री बाबा पे श्रद्धा रखती थी
साईं उसकी भक्ति से उस पर प्रसन्न हो गए
श्री राम रूप में उसे दर्शन भी दे दिए
निज ईष्ट के दर्शन से वह द्रवित हो गई
आँखों से उसके आंसुओं की धारा बह गई
वो प्रेम में डूब-डूब नाचने लगी
खुश हो-हो कर ताली बजाने लगी
श्री साईं के चरणों में फिर ऐसी दृष्टि गड़ गई
मन से वह शांत, स्थिर और संतृप्त हो गई
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
शिर्डी आना-जाना सब साईं के वश में
भक्तों की चाह को वो पूरी करते हैं पल में
उनकी इच्छा बिना ना कोई शिर्डी से जा सका
साईं की मर्ज़ी के बिना ना शिर्डी ही आ सका
काका जी एक बार आना चाहते थे शिर्डी
बाबा की इच्छा से ही शामा संग आ गए शिर्डी
बाबा की छवि देख काका तृप्त हो गए
लीलाएं उनकी सुनकर शरणागत ही हो गए
ठीक ऐसे ही बाबा ने रामलाल को कहा
सपने में उसको शिर्डी आने को कहा
गद्गद् हो कर रामलाल शिर्डी आ गया
फिर शिर्डी से कहीं और नहीं वो गया
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
संजीवनी समान ऊदी देते साईंनाथ
माथे पे सबके लगा दुआ देते साईंनाथ
ऊदी ने ऐसे-ऐसे चमत्कार दिखाए
जैसे साईं से सारा जग जीवन है पाए
जब एक बार मैना की प्रसव-पीड़ा बढ़ गई
तब बाबा की ऊदी उसकी रक्षक बन गई
स्वयं साईं ही गाड़ी ले जामनेर थे आए
पर अपनी इस लीला को थे सबसे छुपाए
ऊदी का घोल पीने से सब ठीक हो गया
मैना के सुत से हर दिल प्रसन्न हो गया
कोई ना जान सका था प्रभु की ये माया
भक्तों की खातिर बाबा ने हर रूप बनाया
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
मेधा का भ्रम दूर करने की चाह में,
सपने में साईं ने उसे त्रिशूल था दिया
शिव चरणों में फिर अपनी प्रीत के कारण
मेधा ने बाबा को शिव-शंकर ही मान लिया
साईं का न कोई रूप था और न कोई अंत
सर्वभूतों में व्याप्त श्री साईं थे अनंत
साईं साईं साईं साईं जिसने जप लिया
भव के सागर से वो तो पार उतर गया
जो भी श्री साईं की नित स्तुति है गाता
बिन मांगे वो सब ही शीघ्र है पाता
मेधा की मौत पे साईं ने शोक जताया
और उसको अपना सच्चा भक्त बताया
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
किस काम में भक्तों का भला साईं ही जानते
हर भक्त को सदा इसलिए वो ही काम कराते
भक्तों के लिए कल्पतरू हैं श्री साईंनाथ
असंभव को संभव बनाते श्री साईंनाथ
शामा श्री साईं का एक अनन्य भक्त था
बाबा की कृपादृष्टि से वो भरा-पूरा था
बाबा की लीलाएं किसी की समझ में ना आई
शामा हेतु रामदास की पोथी चुराई
रामदास हठी था, वो शामा से भिड़ गया
बाबा के समझाने पर वह शांत हो गया
निज पोथी के बदले पंचरत्नी गीता थी पाई
दोनों के लिए क्या सही, ये जानते थे साईं
श्री साईं गाथा सुनिए जय साईंनाथ कहिए
जब कष्ट अधिक देने लगी नासूर की पीड़ा
तब पिल्लई जी दुखी हो गए और अति अधीरा
वे मन ही मन बाबा से विनती करने लगे
जहां में तुम सा कोई नहीं, कहने ये लगे
बाबा ने अचानक उसे मस्जिद में बुलाया
और अब्दुल को ही उसका चिकित्सक था बनाया
फिर अब्दुल का पैर घाव पे पड़ गया
समझाने-बुझाने का तो वक्त ही निकल गया
पेहले पिल्लई चिल्लाए, फिर शांत हो गए
और गाने की मस्ती में वो खो गए
जहाँ में नुमायां तेरी ही शान है
तू ही दोनों आलम का सुल्तान है
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
जिसने भी साईं बाबा को दिल से जब था पुकारा
साईं ने दिया उसको तुरंत बढ़ के सहारा
साईं को जब भी श्रद्धा से तुम याद करोगे
तब ही साईं को अपने पास पाओगे
वीर-चैनब में जब था भेद समाया
तो दोनों ने सर्प-मेंडक की योनि को पाया
इस जन्म में भी दोनों में बैर बढ़ गया
तब साईं के प्रयत्नों से उनका मतभेद मिट गया
हैं धन्य साईंनाथ, उनकी महिमा अति भारी
हृदय में बस जाए, ऐसी छवि भी है प्यारी
भगवान भी भक्तों के अधीन हैं रहते
संकट पड़ता भक्त पे तो पीछे ना रहते
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
बाबा ने अन्नदान को महादान बताया
भूखे की भूख मिटाने को ही पूजा बताया
बाबा भक्तों को खुद भोजन कराते थे
खाना खुद पकाते और बांटते भी थे
कभी-कभी साईं दाल-मटुकुले बनाते
कभी मीठे चावल और पुलाव बनाते
खाने से पहले मौलवी फातिहा भी पढ़ते
फिर म्हालसापति, तांत्या का हिस्सा अलग ही रखते
धन्य रहे वे लोग, जिन्होंने ऐसा भोजन खाया
बाबा का उसके संग आशीष भी पाया
हैं साईंनाथ ऐसा भाग्य सब को ही दे दो
अमृत रूप में अपनी करुणा सब को ही दे दो
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
रंग साईं का मन पे चढ़ गया जो एक बार
साईं भक्ति में झूमेगा वो तो हज़ार बार
बाबा ने कहा जब भी मुझे तुम याद करोगे
सात समंदर पार भी मुझको अपने पास पाओगे
एक दिन बाबा से मिलने गोवा से सज्जन थे आए
दोनों ही बाबा के लिए कुछ दक्षिणा भी लाए
बाबा ने एक से ले, दुसरे को अस्वीकार कर दिया
और उनका सारा हाल सबको सच बता दिया
बाबा के ऐसा करने पर वे आश्चर्यचाकित हो गए
साईं की महिमा जान दोनों के आंसू ही बह गए
श्री साईं सर्वव्यापी अनंत परब्रह्मस्वरूप हैं
शिर्डी के बाहर भी उनका व्यापा स्वरूप है
श्री साईं गाथा सुनिए जय साईंनाथ कहिए
साईं को एक ईंट से बेहद लगाव था
आत्मचिंतन करने में उसका बड़ा हाथ था
दिन में साईं उस पर हाथ टेक कर रखते
और रात में सिर के नीचे रख शयन थे करते
एक दिन किसी बालक से वो ईंट टूट गई
बाबा ने कहा, मेरी तो किस्मत ही फूट गई
बाबा को वेह अपने प्राणों से थी अति प्यारी
हर चीज़ के प्रीत उनकी ममता थी अति न्यारी
बाबा के निर्वाण पूर्व का यह एक अपशकुन था
कहने को ईंट का टूटना एक सूचना स्वरूप था
मन और इन्द्रियों को वश में रखने वाला तत्त्व साईं हैं
जिसका न रूप है, न अंत है, वही तो साईं है
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
साईं तो है इस पूरे ब्रह्मांड के नायक
दुःख हरते सब तरह से बनते हैं सहायक
माँ बायजा का ऋण साईं ने ऐसे चुकाया
तांत्या का जीवन मौत के हाथों बचाया
तांत्या बच गया और साईं चले गए 
देखते ही देखते समाधिस्थ हो गए
जिसने भी सुना वो स्तब्ध रह गया
एक पल में शिर्डी में मातम ठहर गया
देह छोड़ने से पहले बाबा ने लक्ष्मी से था कहा
तेरी भक्ति को याद रखेगा ये सारा जहाँ
बाबा ने उसे भक्ति के नौ रूप थे दिए
नौ सिक्कों के रूप में भक्ति के नए अर्थ दे दिए
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
बाबा के देह त्यागने की जब खबर फैल गई
शिर्डी में चारों ओर से भीड़ जमा हो गई
शिर्डी के नर-नारी मस्जिद की ओर दौड़ पड़े
कुछ रोने लगे और कुछ बेसुध होकर गिर पड़े
अब बाबा की अंतिम क्रिया की बहस चल पड़ी
साईं हिन्दू थे या मुसलमान, चर्चा ये चल पड़ी
कुछ यवन बाबा को दफ़नाने को कहने लगे,
कुछ बाबा को बूटीवाडे में रखने की फरियाद करने लगे
आखिर में सबने बूटीवाडे में रखने का फैंसला किया
इसके लिए उसका बीच का भाग खोदा गया
बाबा बूटीवाडे को सार्थक कर गए
मुरलीधर की जगह साईं खुद मुरलीधर ही बन गए
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
कहने को तो साईं का साकार रूप लुप्त हो गया
बाबा का हाथ भक्तों के सिर पे से उठ गया
पर आज भी शिर्डी में बाबा विराजमान हैं
समाधी में जैसे श्री साईं के बसे प्राण हैं
साईं ने ग्यारह वचनों में वरदान जो दिए
वो सब के सब आज भी पूरे हैं किए
साईं बाबा आज भी कष्टों को हैं हरते
अन्न-धन देकर सबकी झोलियाँ हैं भरते
शिर्डी में साईं की धूनी आज भी है जलती
भक्तों की सारी आशाएं पूरी है करती
हर वीरवार बाबा का दरबार यहाँ सजता
पालकी के संग-संग मेला-सा जुड़ता
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
शिर्डी में आज भी दुनिया भर से लोग हैं आते
मुहमांगी मुरादें यहाँ से पल में पा जाते
जब भोर के समय होती है काकड़ आरती
कहते हैं उस समय देवता भी शिर्डी में हैं आते
धरती से ले के आकाश तक साईं नाम गूंजता
छोटा-बड़ा हर प्राणी साईं-भक्ति में झूमता
फिर मंगल-स्नान साईं का जब है होता
हर भक्त उसमें अपना सहयोग है देता
कोई फूल-हार, कोई चादर है लाता
अपने-अपने ढंग से हर कोई साईं को रिझाता
समाधि पे तब साईं की, सब सिर को झुकाते
अपने-अपने दिल का हाल अपने साईं को सुनाते
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
शिर्डी में गुरुस्थान की महिमा है अपरंपार
जो भी लगाता चक्कर इसके ग्यारह ही बार
हर पीड़ा से भक्त वो मुक्ति पा जाता
जो बैठ यहाँ साईं नाम है गाता
साईं का नीम आज भी भक्तों को छांव है देता
पत्तों के उससे हर कोई मिठास ही लेता
गुरुस्थान में बाबा के गुरु को शीश नवाकर
हर कोई उनसे भी है आशीष ही पाता
बाबा की चरण-पादुका पे फूल-हार चढ़ाकर
लोबान और अगरबत्ती यहाँ पे जलाकर
हर भक्त सुख-शांति सब प्यार है पाता
और साईं की दुआओं को संग अपने पाता
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
महिमा द्वारिकामाई की भी है अति न्यारी
भक्तों की माँ जैसी यह सबकी दुलारी
जो भी इसकी गोद में एक बार बैठता
अपने सारे दुःख माँ की झोली में डालता
रात-दिन यहाँ जलती है धूनी माई
देख जिसको याद आ जाते हैं जय श्री साईं
धूनी की भस्म ऊदी को हर भक्त माथे पे लगाता
और साथ ले के उसको अपने घर भी आता
ऊदी में आज भी वही संजीवनी शक्ति
साईं की दुआ से ये बढ़ाती साईं-भक्ति
जिसने भी यहाँ भूखों को भोजन करा दिया
वो साईं-भक्त साईं-कृपा को पल में ही पा गया
श्री साईं गाथा सुनिए। श्री साईंनाथ सुनिए।।
साईं की चावडी भी अद्भुत अति सुंदर ,
लगता है साईं विश्राम कर रहे हैं अब भी अन्दर
गुरूवार के दिन यहाँ पे रंगोली है सजती,
हर्षाये मन से सबकी आँखे उसे तकती 
स्वर्ग से भी सुन्दर दृश्य यहाँ पे सजता 
साईं मनो हर रूप में सबके कष्ट हरता 
ढोल - मंजीरे सब वाद्य भी बजते,
और भक्त लोग झूम झूम साईं आरती करते
बाबा की सारी लीलाएं तब सजीव हो जातीं
जब फूलों की बरखा यहाँ हैं होती
मस्जिद से चलकर जब आती है पालकी 
शिव भोले की हो मानो विवाह की झांकी 
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईं नाथ कहिये।।
साईं में शिव और शिव में हैं साईं 
यही लीला साईं नाथ ने भी दिखाई 
शिव-साईं की महिमा तो है बड़ी न्यारी 
भोले में बसी साईं की छवि है प्यारी 
मंदिर परिसर में भी साईं ने बनाया शिव मंदिर 
साईं में शिव की झलक दिखाता यही मंदिर 
शिव का जो भी भक्त यहाँ दर्शन करता 
और ॐ साईं, ॐ साईं, मुंह से कहता 
सब कर्मों की गति से वह तुरंत छूट जाता,
यहीं शनि प्रतिमा के आगे जो दीपक जलाता 
इस मंदिर के दर्शन जो एक बार कर गया
वो साईं-भक्त साईं का प्यार पा गया
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
बाबा ने कहा था जो मुझे प्रेम है करता
वह सदा ही अपनी झोलियां हैं भरता
उसके लिए मेरे बिना ये संसार है सूना
वह सतत मेरा ही ध्यान है करता 
जो मुझे अर्पण किए बिना भोजन नहीं करता
वह सदा ही मेरा कृपा का पात्र है बनता 
जो व्यक्ति दूसरों को पीड़ा देता है
वह उसे नहीं, मुझको भी दुःख देता है 
भक्तों की भलाई हेतु साईं ने अवतार था लिया 
देह को नश्वर मान उनको था मुक्त किया 
जगतारण बन कर ही आये थे साईं 
दुष्टजनों के संग भी उन्होंने प्रीती दिखाई 
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए।।
श्री साईं सारी सृष्टि के कण - कण में हैं बसे 
हर प्राणी की हर सांस में भी हैं वो बसे 
फूलों की खुशबू में भी साईं नाम है बसता
पक्षियों के मधुर गान में भी साईं नाम गूंजता 
श्रीराम साईं हैं और रहीम है साईं
गीता, बाइबिल और कुरान हैं साईं
मंदिर के घंटे की गूँज में हैं साईं
मस्जिद की हर अज़ान में भी हैं साईं
साईं बाबा आज भी भक्तों के हैं आश्रयदाता
वही सबके प्रभु हैं इस जग के विधाता 
ऐसे सर्वेश्वर को सौ बार नमन है मेरा 
दीनों के नाथ को प्रणाम है मेरा 
श्री साईं गाथा सुनिए। जय साईंनाथ कहिए ।।
Anuradha Ramani


श्री साई सच्चरित्र



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